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    रंगभूमि

    पे्रिचंद

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    अध्याय 1

    शहर अिीर ंके रहने और क्रय-मिक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके िन रंजन और मिन द

    की जगह है। उसके िध् य भाग िें उनके लड़क ंकी पाठशालाएँ और उनके िुकद़िेबाजी के अखाडे़ ह ते

    हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीब ंका गला घ टंा जाता है। शहर के आस-पास गरीब ंकी बस्तियाँ ह ती हैं।

    बनारस िें पाँडे़पुर ऐसी ही बिी है। िहाँ न शहरी दीपक ंकी ज्य मत पहँचती है, न शहरी मिड़काि के

    िीटें, न शहरी जल-खेत ंका प्रिाह। सड़क के मकनारे ि टे-ि टे बमनय ंऔर हलिाइय ंकी दूकानें हैं, और

    उनके पीिे कई इके्किाले, गाड़ीिान, ग्वाले और िजदूर रहते हैं। द -चार घर मबगडे़ सफेदप श ंके भी हैं,

    मजन्हें उनकी हीनािस्था ने शहर से मनिाामसत कर मदया है। इन्ही ंिें एक गरीब और अंधा चिार रहता है,

    मजसे ल ग सूरदास कहते हैं। भारतिर्ा िें अंधे आदमिय ंके मलए न नाि की जरूरत ह ती है, न काि की।

    सूरदास उनका बना-बनाया नाि है, और भीख िाँगना बना-बनाया काि है। उनके गुण और स्वभाि भी

    जगत्-प्रमसध्द हैं-गाने-बजाने िें मिशेर् रुमच, हृदय िें मिशेर् अनुराग, अध् यात् ि और भस्ति िें मिशेर् पे्रि,

    उनके स्वाभामिक लक्षण हैं। बाह्य दृमि बंद और अंतदृामि खुली हई।

    सूरदास एक बहत ही क्षीणकाय, दुबाल और सरल व्यस्ति था। उसे दैि ने कदामचत् भीख िाँगने ही के मलए

    बनाया था। िह मनत्यप्रमत लाठी टेकता हआ पक्की सड़क पर आ बैठता और राहगीर ंकी जान की खैर

    िनाता। 'दाता! भगिान् तुम्हारा कल्यान करें -' यही उसकी टेक थी, और इसी क िह बार-बार दुहराता था।

    कदामचत् िह इसे ल ग ंकी दया-पे्ररणा का िंत्र सिझता था। पैदल चलनेिाल ंक िह अपनी जगह पर

    बैठे-बैठे दुआएँ देता था। लेमकन जब क ई इक्का आ मनकलता, त िह उसके पीिे दौड़ने लगता, और

    बस्तिय ंके साथ त उसके पैर ंिें पर लग जाते थे। मकंतु हिा-गामड़य ंक िह अपनी शुभेच्छाओ ंसे परे

    सिझता था। अनुभि ने उसे मशक्षा दी थी मक हिागामड़याँ मकसी की बातें नही ंसुनती।ं प्रात:काल से संध् या

    तक उसका सिय शुभ कािनाओ ंही िें कटता था। यहाँ तक मक िाघ-पूस की बदली और िायु तथा जेठ-

    िैशाख की लू-लपट िें भी उसे नागा न ह ता था।

    कामताक का िहीना था। िायु िें सुखद शीतलता आ गई थी। संध् या ह चुकी थी। सूरदास अपनी जगह पर

    िूमताित् बैठा हआ मकसी इके्क या बिी के आशाप्रद शब्द पर कान लगाए था। सड़क के द न ंओर पेड़

    लगे हए थे। गाड़ीिान ंने उनके नीचे गामड़याँ ढील दी।ं उनके पिाईं बैल टाट के टुकड़ ंपर खली और भूसा

    खाने लगे। गाड़ीिान ंने भी उपले जला मदए। क ई चादर पर आटा गंूधाता था, क ई ग ल-ग ल बामटयाँ

    बनाकर उपल ंपर सेंकता था। मकसी क बरतन ंकी जरूरत न थी। सालन के मलए घुइएँ का भुरता काफी

    था। और इस दररद्रता पर भी उन्हें कुि मचंता नही ंथी, बैठे बामटयाँ सेंकते और गाते थे। बैल ंके गले िें बँधी

    हई घंमटयाँ िजीर ंका काि दे रही थी।ं गनेस गाड़ीिान ने सूरदास से पूिा-क् ंभगत, ब्याह कर गे?

    सूरदास ने गदान महलाकर कहा-कही ंहै डौल?

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    गनेस-हाँ, है क् ंनही।ं एक गाँि िें एक सुररया है, तुम्हारी ही जात-मबरादरी की है, कह त बातचीत पक्की

    करँू? तुम्हारी बरात िें द मदन िजे से बामटयाँ लगें।

    सूरदास-क ई जगह बताते, जहाँ धान मिले, और इस मभखिंगी से पीिा िूटे। अभी अपने ही पेट की मचंता

    है, तब एक अंधी की और मचंता ह जाएगी। ऐसी बेड़ी पैर िें नही ंडालता। बेड़ी ही है, त स ने की त ह ।

    गनेस-लाख रुपये की िेहररया न पा जाओगे। रात क तुम्हारे पैर दबाएगी, मसर िें तेल डालेगी, त एक बार

    मफर जिान ह जाओगे। ये हमियाँ न मदखाई देंगी।

    सूरदास-त र मटय ंका सहारा भी जाता रहेगा। ये हमियाँ देखकर ही त ल ग ंक दया आ जाती है। ि टे

    आदमिय ंक भीख कौन देता है? उलटे और ताने मिलते हैं।

    गनेस-अजी नही,ं िह तुम्हारी सेिा भी करेगी और तुम्हें भ जन भी देगी। बेचन साह के यहाँ तेलहन झाडे़गी

    त चार आने र ज पाएगी।

    सूरदास-तब त और भी दुगामत ह गी। घरिाली की किाई खाकर मकसी क िँुह मदखाने लायक भी न

    रहँगा।

    सहसा एक मफटन आती हई सुनाई दी। सूरदास लाठी टेककर उठ खड़ा हआ। यही उसकी किाई का

    सिय था। इसी सिय शहर के रईस और िहाजन हिा खाने आते थे। मफटन ज्य ंही सािने आई, सूरदास

    उसके पीिे 'दाता! भगिान् तुम्हारा कल्यान करें ' कहता हआ दौड़ा।

    मफटन िें सािने की गद्दी पर मि. जॉन सेिक और उनकी पत्नी मिसेज जॉन सेिक बैठी हई थी।ं दूसरी गद्दी

    पर उनका जिान लड़का प्रभु सेिक और ि टी बहन स म़िया सेिक थी। जॉन सेिक दुहरे बदन के ग रे-

    मचटे्ट आदिी थे। बुढापे िें भी चेहरा लाल था। मसर और दाढी के बाल स्तखचड़ी ह गए थे। पहनािा ऍंगरेजी

    था, ज उन पर खूब स्तखलता था। िुख आकृमत से गरूर और आत्ममिश्वास झलकता था। मिसेज सेिक क

    काल-गमत ने अमधक सताया था। चेहरे पर झुररायाँ पड़ गई थी,ं और उससे हृदय की संकीणाता टपकती थी,

    मजसे सुनहरी ऐनक भी न मिपा सकती थी। प्रभु सेिक की िसें भीग रही थी,ं िरहरा डील, इकहरा बदन,

    मनिेज िुख, ऑंख ंपर ऐनक, चेहरे पर गम्भीरता और मिचार का गाढा रंग नजर आता था। ऑंख ंसे

    करुणा की ज्य मत-सी मनकली पड़ती थी। िह प्रकृमत-सौदंया का आनंद उठाता हआ जान पड़ता था। मिस

    स म़िया बड़ी-बड़ी रसीली ऑंख िंाली, लज्जाशील युिती थी। देह अमत क िल, िान पंचभूत ंकी जगह

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    पुष् ंसे उसकी सृमि हई ह । रूप अमत सौम्य, िान लज्जा और मिनय िूमतािान ह गए ह ।ं मसर से पाँि

    तक चेतना ही चेतना थी, जड़ का कही ंआभास तक न था।

    सूरदास मफटन के पीिे दौड़ता चला आता था। इतनी दूर तक और इतने िेग से क ई िँजा हआ स्तखलाड़ी

    भी न दौड़ सकता था। मिसेज सेिक ने नाक मसक ड़कर कहा-इस दुि की चीख ने त कान के परदे फाड़

    डाले। क्ा यह दौड़ता ही चला जाएगा?

    मि. जॉन सेिक ब ले-इस देश के मसर से यह बला न-जाने कब टलेगी? मजस देश िें भीख िाँगना लज्जा की

    बात न ह , यहाँ तक मक सिाशे्रष्ठ जामतयाँ भी मजसे अपनी जीिन-िृमि बना लें, जहाँ िहात्माओ ंका एकिात्र

    यही आधार ह , उसके उध्दार िें अभी शतास्तब्दय ंकी देर है।

    प्रभु सेिक-यहाँ यह प्रथा प्राचीन काल से चली आती है। िैमदक काल िें राजाओ ंके लड़के भी गुरुकुल ंिें

    मिद्या-लाभ करते सिय भीख िाँगकर अपना और अपने गुरु का पालन करते थे। ज्ञामनय ंऔर ऋमर्य ंके

    मलए भी यह क ई अपिान की बात न थी, मकंतु िे ल ग िाया-ि ह से िुि रहकर ज्ञान-प्रास्ति के मलए दया

    का आश्रय लेते थे। उस प्रथा का अब अनुमचत व्यिहार मकया जा रहा है। िैंने यहाँ तक सुना है मक मकतने

    ही ब्राह्मण, ज जिीदंार हैं, घर से खाली हाथ िुकदिे लड़ने चलते हैं, मदन-भर कन्या के मििाह के बहाने या

    मकसी समं्बधी की िृतु्य का हीला करके भीख िाँगते हैं, शाि क नाज बेचकर पैसे खडे़ कर लेते हैं, पैसे

    जल्द रुपये बन जाते हैं, और अंत िें कचहरी के किाचाररय ंऔर िकील ंकी जेब िें चले जाते हैं।

    मिसेज़ सेिक-साईस, इस अंधे से कह द , भाग जाए, पैसे नही ंहैं।

    स म़िया-नही ंिािा, पैसे ह ंत दे दीमजए। बेचारा आध िील से दौड़ा आ रहा है, मनराश ह जाएगा। उसकी

    आत्मा क मकतना दु:ख ह गा।

    िाँ-त उससे मकसने दौड़ने क कहा था? उसके पैर ंिें ददा ह ता ह गा।

    स म़िया-नही,ं अच्छी िािा, कुि दे दीमजए, बेचारा मकतना हाँफ रहा है। प्रभु सेिक ने जेब से केस

    मनकाला; मकंतु ताँबे या मनमकल का क ई टुकड़ा न मनकला, और चाँदी का क ई मसक्का देने िें िाँ के नाराज

    ह ने का भय था। बहन से ब ले-स फी, खेद है, पैसे नही ंमनकले। साईस, अंधे से कह द , धीरे-धीरे ग दाि

    तक चला आए; िहाँ शायद पैसे मिल जाएँ।

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    मकंतु सूरदास क इतना संत र् कहाँ? जानता था, ग दाि पर क ई भी िेरे मलए खड़ा न रहेगा; कही ंगाड़ी

    आगे बढ गई, त इतनी िेहनत बेकार ह जाएगी। गाड़ी का पीिा न ि ड़ा, पूरे एक िील तक दौड़ता चला

    गया। यहाँ तक मक ग दाि आ गया और मफटन रुकी। सब ल ग उतर पडे़। सूरदास भी एक मकनारे खड़ा

    ह गया, जैसे िृक्ष ंके बीच िें ठँूठ खड़ा ह । हाँफते-हाँफते बेदि ह रहा था।

    मि. जॉन सेिक ने यहाँ चिडे़ की आढत ख ल रखी थी। तामहर अली नाि का एक व्यस्ति उसका गुिाश्ता

    था बरािदे िें बैठा हआ था। साहब क देखते ही उसने उठकर सलाि मकया।

    जॉन सेिक ने पूिा-कमहए खाँ साहब, चिडे़ की आिदनी कैसी है?

    तामहर-हजूर, अभी जैसी ह नी चामहए, िैसी त नही ंहै; िगर उम्मीद है मक आगे अच्छी ह गी।

    जॉन सेिक-कुि दौड़-धूप कीमजए, एक जगह बैठे रहने से काि न चलेगा। आस-पास के देहात ंिें चक्कर

    लगाया कीमजए। िेरा इरादा है मक मु्यमनमसपैमलटी के चेयरिैन साहब से मिलकर यहाँ एक शराब और ताड़ी

    की दूकान खुलिा दँू। तब आस-पास के चिार यहाँ र ज आएँगे, और आपक उनसे िेल-ज ल करने का

    िौका मिलेगा। आजकल इन ि टी-ि टी चाल ंके बगैर काि नही ंचलता। िुझी क देस्तखए, ऐसा शायद ही

    क ई मदन जाता ह गा, मजस मदन शहर के द -चार धानी-िानी पुरुर् ंसे िेरी िुलाकात न ह ती ह । दस

    हजार की भी एक पामलसी मिल गई, त कई मदन ंकी दौड़धूप मठकाने लग जाती है।

    तामहर-हजूर, िुझे खुद मफक्र है। क्ा जानता नही ंहँ मक िामलक क चार पैसे का नफा न ह गा, त िह यह

    काि करेगा ही क् ?ं िगर हजूर ने िेरी ज तनख्वाह िुकरा र की है, उसिें गुजारा नही ंह ता। बीस रुपये

    का त गल्ला भी काफी नही ंह ता, और सब जरूरतें अलग। अभी आपसे कुि कहने की महम्म्त त नही ं

    पड़ती; िगर आपसे न कहँ, त मकससे कहँ?

    जॉन सेिक-कुि मदन काि कीमजए, तरक्की ह गी न। कहाँ है आपका महसाब-मकताब लाइए, देखँू।

    यह कहते हए जॉन सेिक बरािदे िें एक टूटे हए ि ढे पर बैठ गए। मिसेज सेिक कुसी पर बैठी।ं तामहर

    अली ने महसाब की बही सािने लाकर रख दी। साहब उसकी जाँच करने लगे। द -चार पने्न उलट-पलटकर

    देखने के बाद नाक मसक ड़कर ब ले-अभी आपक महसाब-मकताब मलखने का सलीका नही ंहै, उस पर

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    आप कहते हैं, तरक्की कर दीमजए। महसाब मबलकुल आईना ह ना चामहए; यहाँ त कुि पता नही ंचलता

    मक आपने मकतना िाल खरीदा, और मकतना िाल रिाना मकया। खरीदार क प्रमत खाता एक आना दिूरी

    मिलती है, िह कही ंदजा ही नही ंहै!

    तामहर-क्ा उसे भी दजा कर दँू?

    जॉन सेिक-क् ,ं िह िेरी आिदनी नही ंहै?

    तामहर-िैंने त सिझा मक िह िेरा हक है।

    जॉन सेिक-हरमगज नही,ं िैं आप पर गबन का िािला चला सकता हँ। (त्य ररयाँ बदलकर) िुलामजि ंका

    हक है! खूब! आपका हक तनख्वाह, इसके मसिा आपक क ई हक नही ंहै।

    तामहर-हजूर, अब आइंदा ऐसी गलती न ह गी।

    जॉन सेिक-अब तक आपने इस िद िें ज रकि िसूल की है, िह आिदनी िें मदखाइए। महसाब-मकताब

    के िािले िें िैं जरा भी ररआयत नही ंकरता।

    तामहर-हजूर, बहत ि टी रकि ह गी।

    जॉन सेिक-कुि िुजायका नही,ं एक ही पाई सही; िह सब आपक भरनी पडे़गी। अभी िह रकि ि टी है,

    कुि मदन ंिें उसकी तादाद सैकड़ ंतक पहँच जाएगी। उस रकि से िैं यहाँ एक संडे-सू्कल ख लना

    चाहता हँ। सिझ गए? िेि साहब की यह बड़ी अमभलार्ा है। अच्छा चमलए, िह जिीन कहाँ है मजसका

    आपने मजक्र मकया था?

    ग दाि के पीिे की ओर एक मििृत िैदान था। यहाँ आस-पास के जानिर चरने आया करते थे। जॉन

    सेिक यह जिीन लेकर यहाँ मसगरेट बनाने का एक कारखाना ख लना चाहते थे। प्रभु सेिक क इसी

    व्यिसाय की मशक्षा प्राि करने के मलए अिेररका भेजा था। जॉन सेिक के साथ प्रभु सेिक और उनकी

    िाता भी जिीन देखने चली।ं मपता और पुत्रा ने मिलकर जिीन का मििार नापा। कहाँ कारखाना ह गा,

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    कहाँ ग दाि, कहाँ दफ्तर, कहाँ िैनेजर का बँगला, कहाँ श्रिजीमिय ंके किरे, कहाँ क यला रखने की

    जगह और कहाँ से पानी आएगा, इन मिर्य ंपर द न ंआदमिय ंिें देर तक बातें ह ती रही।ं अंत िें मिस्टर

    सेिक ने तामहर अली से पूिा-यह मकसकी जिीन है?

    तामहर-हजूर, यह त ठीक नही ंिालूि, अभी चलकर यहाँ मकसी से पूि लँूगा, शायद नायकराि पंडा की

    ह ।

    साहब-आप उससे यह जिीन मकतने िें मदला सकते हैं?

    तामहर-िुझे त इसिें भी शक है मक िह इसे बेचेगा भी।

    जॉन सेिक-अजी, बेचेगा उसका बाप, उसकी क्ा हिी है? रुपये के सिारह आने दीमजए, और आसिान

    के तारे िँगिा लीमजए। आप उसे िेरे पास भेज दीमजए, िैं उससे बातें कर लँूगा।

    प्रभु सेिक-िुझे त भय है मक यहाँ कच्चा िाल मिलने िें कमठनाई ह गी। इधार ल ग तम्बाकू की खेती कि

    करते हैं।

    जॉन सेिक-कच्चा िाल पैदा करना तुम्हारा काि ह गा। मकसान क ऊख या जौ-गेहँ से क ई पे्रि नही ं

    ह ता। िह मजस मजन्स के पैदा करने िें अपना लाभ देखेगा िही पैदा करेगा। इसकी क ई मचंता नही ंहै। खाँ

    साहब, आप उस पणे्ड क िेरे पास कल जरूर भेज दीमजएगा।

    तामहर-बहत खूब, उसे कहँगा।

    जान सेिक-कहँगा नही,ं उसे भेज दीमजएगा। अगर आपसे इतना भी न ह सका, त िैं सिझूँगा, आपक

    सौदा पटाने का जरा भी ज्ञान नही।ं

    मिसेज सेिक-(ऍंगरेजी िें) तुम्हें इस जगह पर क ई अनुभिी आदिी रखना चामहए था।

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    जान सेिक-(ऍंगरेजी िें) नही,ं िैं अनुभिी आदमिय ंसे डरता हँ। िे अपने अनुभि से अपना फायदा स चते

    हैं, तुम्हें फायदा नही ंपहँचाते। िैं ऐसे आदमिय ंसे क स ंदूर रहता हँ।

    ये बातें करते हए तीन ंआदिी मफटन के पास गए। पीिे-पीिे तामहर अली भी थे। यहाँ स म़िया खड़ी

    सूरदास से बातें कर रही थी। प्रभु सेिक क देखते ही ब ली-'प्रभु, यह अंधा त क ई ज्ञानी पुरुर् जान पड़ता

    है, पूरा मफलासफर है।'

    मिसेज़ सेिक-तू जहाँ जाती है, िही ंतुझे क ई-न-क ई ज्ञानी आदिी मिल जाता है। क् ंरे अंधे, तू भीख क् ं

    िाँगता है? क ई काि क् ंनही ंकरता?

    स म़िया-(ऍंगरेजी िें) िािा, यह अंधा मनरा गँिार नही ंहै।

    सूरदास क स म़िया से सम्मान पाने के बाद ये अपिानपूणा शब्द बहत बुरे िालूि हए। अपना आदर

    करनेिाले के सािने अपना अपिान कई गुना असह्य ह जाता है। मसर उठाकर ब ला-भगिान् ने जन्म मदया

    है, भगिान् की चाकरी करता हँ। मकसी दूसरे की ताबेदारी नही ंह सकती।

    मिसेज़ सेिक-तेरे भगिान् ने तुझे अंधा क् ंबना मदया? इसमलए मक तू भीख िाँगता मफरे? तेरा भगिान्

    बड़ा अन्यायी है।

    स म़िया-(ऍंगरेजी िें) िािा, आप इसका अनादर क् ंकर रही हैं मक िुझे शिा आती है।

    सूरदास-भगिान् अन्यायी नही ंहै, िेरे पूिा-जन्म की किाई ही ऐसी थी। जैसे किा मकए हैं, िैसे फल भ ग

    रहा हँ। यह सब भगिान् की लीला है। िह बड़ा स्तखलाड़ी है। घरौदें बनाता-मबगाड़ता रहता है। उसे मकसी

    से बैर नही।ं िह क् ंमकसी पर अन्याय करने लगा?

    स म़िया-िैं अगर अंधी ह ती, त खुदा क कभी िाफ न करती।

    सूरदास-मिस साहब, अपने पाप सबक आप भ गने पड़ते हैं, भगिान का इसिें क ई द र् नही।ं

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    स म़िया-िािा, यह रहस्य िेरी सिझ िें नही ंआता। अगर प्रभु ईसू ने अपने रुमधार से हिारे पाप ंका

    प्रायमिि कर मदया, त मफर ईसाई सिान दशा िें क् ंनही ंहैं? अन्य ितािलस्तम्बय ंकी भाँमत हिारी जामत

    िें अिीर-गरीब, अचे्छ-बुरे, लँगडे़-लूले, सभी तरह के ल ग िौजूद हैं। इसका क्ा कारण है?

    मिसेज़ सेिक ने अभी क ई उिर न मदया था मक सूरदास ब ल उठा-मिस साहब, अपने पाप ंका प्रायमिि

    हिें आप करना पड़ता है। अगर आज िालूि ह जाए मक मकसी ने हिारे पाप ंका भार अपने मसर ले मलया,

    त संसार िें अंधेर िच जाए।

    मिसेज़ सेिक-स फी, बडे़ अफस स की बात है मक इतनी ि टी-सी बात तेरी सिझ िें नही ंआती, हालाँमक

    रेिरेंड मपि ने स्वयं कई बार तेरी शंका का सिाधान मकया है।

    प्रभु सेिक-(सूरदास से) तुम्हारे मिचार िें हि ल ग ंक िैरागी ह जाना चामहए। क् ?ं

    सूरदास-हाँ जब तक हि िैरागी न ह गें, दु:ख से नही ंबच सकते।

    जॉन सेिक-शरीर िें भभूत िलकर भीख िाँगना स्वयं सबसे बड़ा दु:ख है; यह हिें दु:ख ंसे क् कंर िुि

    कर सकता है?

    सूरदास-साहब, िैरागी ह ने के मलए भभूत लगाने और भीख िाँगने की जरूरत नही।ं हिारे िहात्माओ ंने

    त भभूत लगाने ओर जटा बढाने क पाखंड बताया है। िैराग त िन से ह ता है। संसार िें रहे, पर संसार

    का ह कर न रहे। इसी क िैराग कहते हैं।

    मिसेज़ सेिक-महंदुओ ंने ये बातें यूनान के ैैजिपबे से सीखी हैं; मकंतु यह नही ंसिझते मक इनका व्यिहार

    िें लाना मकतना कमठन है। यह ह ही नही ंसकता मक आदिी पर दु:ख-सुख का असर न पडे़। इसी अंधे

    क अगर इस िि पैसे न मिलें, त मदल िें हजार ंगामलयाँ देगा।

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    जॉन सेिक-हाँ, इसे कुि ित द , देख , क्ा कहता है। अगर जरा भी भुन-भुनाया, त हंटर से बातें करँूगा।

    सारा िैराग भूल जाएगा। िाँगता है भीख ध ले-ध ले के मलए िील ंकुि ंकी तरह दौड़ता है, उस पर दािा

    यह है मक िैरागी हँ। (क चिान से) गाड़ी फेर , क्लब ह ते हए बँगले चल ।

    स म़िया-िािा, कुि त जरूर दे द , बेचारा आशा लगाकर इतनी दूर दौड़ा आया था।

    प्रभु सेिक-ओह , िुझे त पैसे भुनाने की याद ही न रही।

    जॉन सेिक-हरमगज नही,ं कुि ित द , िैं इसे िैराग का सबक देना चाहता हँ।

    गाड़ी चली। सूरदास मनराशा की िूमता बना हआ अंधी ऑंख ंसे गाड़ी की तरफ ताकता रहा, िान उसे अब

    भी मिश्वास न ह ता था मक क ई इतना मनदायी ह सकता है। िह उपचेतना की दशा िें कई कदि गाड़ी के

    पीिे-पीिे चला। सहसा स म़िया ने कहा-सूरदास, खेद है, िेरे पास इस सिय पैसे नही ंहैं। मफर कभी

    आऊँगी, त तुम्हें इतना मनराश न ह ना पडे़गा।

    अंधे सूक्ष्मदशी ह ते हैं। सूरदास स्तस्थमत क भलीभाँमत सिझ गया। हृदय क के्लश त हआ, पर बेपरिाही से

    ब ला-मिस साहब, इसकी क्ा मचंता? भगिान् तुम्हारा कल्याण करें । तुम्हारी दया चामहए, िेरे मलए यही

    बहत है।

    स म़िया ने िाँ से कहा-िािा, देखा आपने, इसका िन जरा भी िैला नही ंहआ।

    प्रभु सेिक-हाँ, दु:खी त नही ंिालूि ह ता।

    जॉन सेिक-उसके मदल से पूि ।

    मिसेज़ सेिक-गामलयाँ दे रहा ह गा।

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    गाड़ी अभी धीरे-धीरे चल रही थी। इतने िें तामहर अली ने पुकारा-हजूर, यह जिीन पंडा की नही,ं सूरदास

    की है। यह कह रहे हैं।

    साहब ने गाड़ी रुकिा दी, लस्तज्जत नेत्र ंसे मिसेज सेिक क देखा, गाड़ी से उतरकर सूरदास के पास आए,

    और नम्र भाि से ब ले-क् ंसूरदास, यह जिीन तुम्हारी है?

    सूरदास-हाँ हजूर, िेरी ही है। बाप-दाद ंकी इतनी ही त मनशानी बच रही है।

    जॉन सेिक-तब त िेरा काि बन गया। िैं मचंता िें था मक न-जाने कौन इसका िामलक है। उससे सौदा

    पटेगा भी या नही।ं जब तुम्हारी है, त मफर क ई मचंता नही।ं तुि-जैसे त्यागी और सज्जन आदिी से ज्यादा

    झंझट न करना पडे़गा। जब तुम्हारे पास इतनी जिीन है, त तुिने यह भेर् क् ंबना रखा है?

    सूरदास-क्ा करँू हजूर, भगिान् की ज इच्छा है, िह कर रहा हँ।

    जॉन सेिक-त अब तुम्हारी मिपमि कट जाएगी। बस, यह जिीन िुझे दे द । उपकार का उपकार, और

    लाभ का लाभ। िैं तुम्हें िँुह-िाँगा दाि दँूगा।

    सूरदास-सरकार, पुरुख ंकी यही मनशानी है, बेचकर उन्हें कौन िँुह मदखाऊँगा?

    जॉन सेिक-यही ंसड़क पर एक कुऑं बनिा दँूगा। तुम्हारे पुरुख ंका नाि चलता रहेगा।

    सूरदास-साहब, इस जिीन से िुहले्लिाल ंका बड़ा उपकार ह ता है। कही ंएक अंगुल-भर चरी नही ंहै।

    आस-पास के सब ढ र यही ंचरने आते हैं। बेच दँूगा, त ढ र ंके मलए क ई मठकाना न रह जाएगा।

    जॉन सेिक-मकतने रुपये साल चराई के पाते ह ?

    सूरदास-कुि नही,ं िुझे भगिान् खाने-भर क य ंही दे देते हैं, त मकसी से चराई क् ंलँू? मकसी का और

    कुि उपकार नही ंकर सकता, त इतना ही सही।

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    जॉन सेिक-(आिया से) तुिने इतनी जिीन य ंही चराई के मलए ि ड़ रखी है? स म़िया सत्य कहती थी मक

    तुि त्याग की िूमता ह । िैंने बड़ -ंबड़ ंिें इतना त्याग नही ंदेखा। तुि धान्य ह ! लेमकन जब पशुओ ंपर इतनी

    दया करते ह , त िनुष् ंक कैसे मनराश कर गे? िैं यह जिीन मलए मबना तुम्हारा गला न ि डूगा

    सूरदास-सरकार, यह जिीन िेरी है जरूर, लेमकन जब तक िुहले्लिाल ंसे पूि न लँू, कुि कह नही ं

    सकता। आप इसे लेकर क्ा करें गे?

    जॉन सेिक-यहाँ एक कारखाना ख लँूगा, मजससे देश और जामत की उन्नमत ह गी, गरीब ंका उपकार ह गा,

    हजार ंआदमिय ंकी र मटयाँ चलेंगी। इसका यश भी तुम्ही ंक ह गा।

    सूरदास-हजूर, िुहले्लिाल ंसे पूिे मबना िैं कुि नही ंकह सकता।

    जॉन सेिक-अच्छी बात है, पूि ल । िैं मफर तुिसे मिलँूगा। इतना सिझ रख मक िेरे साथ सौदा करने िें

    तुम्हें घाटा न ह गा। तुि मजस तरह खुश ह गे, उसी तरह खुश करँूगा। यह ल (जेब से पाँच रुपये

    मनकालकर), िैंने तुम्हें िािूली मभखारी सिझ मलया था, उस अपिान क क्षिा कर ।

    सूरदास-हजूर, िैं रुपये लेकर क्ा करँूगा? धिा के नाते द -चार पैसे दे दीमजए, त आपका कल्याण

    िनाऊँगा। और मकसी नाते से िैं रुपये न लँूगा।

    जॉन सेिक-तुम्हें द -चार पैसे क्ा दँू? इसे ले ल , धािााथा ही सिझ ।

    सूरदास-नही ंसाहब, धिा िें आपका स्वाथा मिल गया है, अब यह धिा नही ंरहा।

    जॉन सेिक ने बहत आग्रह मकया, मकंतु सूरदास ने रुपये नही ंमलए। तब िह हारकर गाड़ी पर जा बैठे।

    मिसेज़ सेिक ने पूिा-क्ा बातें हईं?

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    जॉन सेिक-है त मभखारी, पर बड़ा घिंडी है। पाँच रुपये देता था, न मलए।

    मिसेज़ सेिक-है कुि आशा?

    जॉन सेिक-मजतना आसान सिझता था, उतना आसान नही ंहै। गाड़ी तेज ह गई।

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    अध्याय 2

    सूरदास लाठी टेकता हआ धीरे-धीरे घर चला। रािे िें चलते-चलते स चने लगा-यह है बडे़ आदमिय ंकी

    स्वाथापरता! पहले कैसे हेकड़ी मदखाते थे, िुझे कुि से भी नीचा सिझा; लेमकन ज्य ंही िालूि हआ मक

    जिीन िेरी है, कैसी लल्ल -चप्प करने लगे। इन्हें िैं अपनी जिीन मदए देता हँ। पाँच रुपये मदखाते थे, िान

    िैंने रुपये देखे ही नही।ं पाँच त क्ा, पाँच सौ भी दें , त भी जिीन न दँूगा। िुहले्लिाल ंक कौन िँुह

    मदखाऊँगा। इनके कारखाने के मलए बेचारी गउएँ िारी-िारी मफरें ! ईसाइय ंक तमनक भी दया-धिा का

    मिचार नही ंह ता। बस, सबक ईसाई ही बनाते मफरते हैं। कुि नही ंदेना था, त पहले ही दुत्कार देते।

    िील-भर दौड़ाकर कह मदया, चल हट। इन सब ंिें िालूि ह ता है, उसी लड़की का स्वभाि अच्छा है।

    उसी िें दया-धिा है। बुमढया त पूरी करकसा है, सीध िँुह बात ही नही ंकरती। इतना घिंड! जैसे यही

    मिक्ट ररया हैं। राि-राि, थक गया। अभी तक दि फूल रहा है। ऐसा आज तक कभी न हआ था मक इतना

    दौड़ाकर मकसी ने क रा जिाब दे मदया ह । भगिान् की यही इच्छा ह गी। िन, इतने दु:खी न ह । िाँगना

    तुम्हारा काि है, देना दूसर ंका काि है। अपना धान है, क ई नही ंदेता, त तुम्हें बुरा क् ंलगता है? ल ग ं

    से कह दँू मक साहब जिीन िाँगते थे? नही ंसब घबरा जाएँगे। िैंने जिाब त दे मदया, अब दूसर ंसे कहने

    का पर जन ही क्ा?

    यह स चता हआ िह अपने द्वार पर आया। बहत ही सािान्य झ पंड़ी थी। द्वार पर एक नीि का िृक्ष था।

    मकिाड़ ंकी जगह बाँस की टहमनय ंकी एक टट्टी लगी हई थी। टट्टी हटाई। किर से पैस ंकी ि टी-सी

    प टली मनकाली, ज आज मदन-भर की किाई थी। तब झ पड़ी की िान टट लकर एक थैली मनकाली, ज

    उसके जीिन का सिास्व थी। उसिें पैस ंकी प टली बहत धीरे से रखी मक मकसी के कान ंिें भनक भी न

    पडे़। मफर थैली क िान िें मिपाकर िह पड़ स के एक घर से आग िाँग लाया। पेड़ ंके नीचे कुि सूखी

    टहमनयाँ जिाकर रखी थी,ं उनसे चूल्हा जलाया। झ पंड़ी िें हलका-सा अस्तस्थर प्रकाश हआ। कैसी

    मिडम्बना थी? मकतना नैराश्य-पूणा दाररद्रय था! न खाट, न मबिर; न बरतन, न भाँडे़। एक क ने िें एक

    मिट्टी का घड़ा था, मजसकी आयु का कुि अनुिान उस पर जिी हई काई से ह सकता था। चूले्ह के पास

    हाँडी थी। एक पुराना, चलनी की भाँमत मिद्र ंसे भरा हआ तिा, एक ि टी-सी कठौती और एक ल टा। बस,

    यही उस घर की सारी संपमि थी। िानि-लालसाओ ंका मकतना संमक्षि स्वरूप! सूरदास ने आज मजतना

    नाज पाया था, िह ज्य -ंका-त्य ंहाँडी िें डाल मदया। कुि जौ थे, कुि गेहँ, कुि िटर, कुि चने, थ ड़ी-सी

    जुआर और िुट्ठीभर चािल। ऊपर से थ ड़ा-सा निक डाल मदया। मकसकी रसना ने ऐसी स्तखचड़ी का िजा

    चखा है? उसिें संत र् की मिठास थी, मजससे िीठी संसार िें क ई ििु नही।ं हाँडी क चूले्ह पर चढाकर

    िह घर से मनकला, द्वार पर टट्टी लगाई और सड़क पर जाकर एक बमनए की दूकान से थ ड़ा-सा आटा

    और एक पैसे का गुड़ लाया। आटे क कठौती िें गँूधा और तब आधा घंटे तक चूले्ह के सािने स्तखचड़ी का

    िधुर आलाप सुनता रहा। उस धंुधले प्रकाश िें उसका दुबाल शरीर और उसका जीणा िस्त्र िनुष् के

    जीिन-पे्रि का उपहास कर रहा था।

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    हाँडी िें कई बार उबाल आए, कई बार आग बुझी। बार-बार चूल्हा फँकते-फँूकते सूरदास की आंख ंसे

    पानी बहने लगता था। ऑंखें चाहे देख न सकें , पर र सकती हैं। यहाँ तक मक िह 'र्ड़रस युि अिलेह

    तैयार हआ। उसने उसे उतारकर नीचे रखा। तब तिा चढाया और हाथ ंसे र मटयाँ बनाकर सेंकने लगा।

    मकतना ठीक अंदाज था। र मटयाँ सब सिान थी-ंन ि टी, न बड़ी; न सेिड़ी, न जली हई। तिे से उतार-

    उतारकर र मटय ंक चूले्ह िें स्तखलाता था, और जिीन पर रखता जाता था। जब र मटयाँ बन गईं त उसने

    द्वार पर खडे़ ह कर ज र से पुकारा-'मिट्ठू, आओ बेटा, खाना तैयार है।' मकंतु जब मिट्ठू न आया, त उसने

    मफर द्वार पर टट्टी लगाई, और नायकराि के बरािदे िें जाकर 'मिट्ठू-मिट्ठू' पुकारने लगा। मिट्ठू िही ं

    पड़ा स रहा था, आिाज सुनकर चौकंा। बारह-तेरह िर्ा का संुदर हँसिुख बालक था। भरा हआ शरीर,

    सुडौल हाथ-पाँि। यह सूरदास के भाई का लड़का था। िाँ-बाप द न ंपे्लग िें िर चुके थे। तीन साल से

    उसके पालन-प र्ण का भार सूरदास ही पर था। िह इस बालक क प्राण ंसे भी प्यारा सिझता था। आप

    चाहे फाके करे, पर मिट्ठू क तीन बार अिश्य स्तखलाता था। आप िटर चबाकर रह जाता था, पर उसे

    शकर और र टी, कभी घी और निक के साथ र मटयाँ स्तखलाता था। अगर क ई मभक्षा िें मिठाई या गुड़ दे

    देता, त उसे बडे़ यत्न से अंग िे के क ने िें बाँध लेता और मिट्ठू क ही देता था। सबसे कहता, यह किाई

    बुढापे के मलए कर रहा हँ। अभी त हाथ-पैर चलते हैं, िाँग-खाता हँ; जब उठ-बैठ न सकँूगा, त ल टा-भर

    पानी कौन देगा? मिट्ठू क स ते पाकर ग द िें उठा मलया, और झ पंड़ी के द्वार पर उतारा। तब द्वार ख ला,

    लड़के का िँुह धुलिाया, और उसके सािने गुड़ और र मटयाँ रख दी।ं मिट्ठू ने र मटयाँ देखी,ं त ठुनककर

    ब ला-िैं र टी और गुड़ न खाऊँगा। यह कहकर उठ खड़ा हआ।

    सूरदास-बेटा, बहत अच्छा गुड़ है, खाओ त । देख , कैसी नरि-नरि र मटयाँ हैं। गेहँ की हैं।

    मिट्ठू-िैं न खाऊँगा।

    सूरदास-त क्ा खाओगे बेटा? इतनी रात गए और क्ा मिलेगा?

    मिट्ठू-िैं त दूध-र टी खाऊँगा।

    सूरदास-बेटा, इस जून खा ल । सबेरे िैं दूध ला दँूगा।

    मिट्ठू र ने लगा। सूरदास उसे बहलाकर हार गया, त अपने भाग्य क र ता हआ उठा, लकड़ी सँभाली और

    टट लता हआ बजरंगी अहीर के घर आया, ज उसके झ पंडे़ के पास ही था। बजरंगी खाट पर बैठा

    नाररयल पी रहा था। उसकी स्त्री जिुनी खाना पकाती थी। ऑंगन िें तीन भैंसें और चार-पाँच गायें चरनी पर

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    बँधी हई चारा खा रही थी।ं बजरंगी ने कहा-कैसे चले सूरे? आज बिी पर कौन ल ग बैठे तुिसे बातें कर

    रहे थे?

    सूरदास-िही ग दाि के साहब थे।

    बजरंगी-तुि त बहत दूर तक गाड़ी के पीिे दौडे़, कुि हाथ लगा?

    सूरदास-पत्थर हाथ लगा। ईसाइय ंिें भी कही ंदया-धिा ह ता है। िेरी िही जिीन लेने क कहते थे।

    बजरंगी-ग दाि के पीिेिाली न?

    सूरदास-हाँ िही,ं बहत लालच देते रहे, पर िैंने हािी नही ंभरी।

    सूरदास ने स चा था, अभी मकसी से यह बात न कहँगा, पर इस सिय दूध लेने के मलए खुशािद जरूरी थी।

    अपना त्याग मदखाकर सुखारू बनना चाहता था।

    बजरंगी-तुि हािी भरते, त यहाँ कौन उसे ि डे़ देता था। तीन-चार गाँि ंके बीच िें िही त जिीन है। िह

    मनकल जाएगी, त हिारी गायें और भैंसें कहाँ जाएँगी?

    जिुनी-िैं त इन्ही ंके द्वार पर सबक बाँध आती।

    सूरदास-िेरी जान मनकल जाए, तब त बेचँू ही नही,ं हजार-पाँच सौ की क्ा मगनती। भौजी, एक घँूट दूध ह

    त दे द । मिठुआ खाने बैठा है। र टी और गुड़ िूता ही नही,ं बस, दूध-दूध की रट लगाए हए है। ज चीज

    घर िें नही ंह ती, उसी के मलए मजद करता है। दूध न पाएगा त मबना खाए ही स रहेगा।

    बजरंगी-ले जाओ, दूध का कौन अकाल है। अभी दुहा है। घीसू की िाँ, एक कुस्तल्हया दूध दे दे सूरे क ।

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    जिुनी-जरा बैठ जाओ सूरे, हाथ खाली ह , त दँू।

    बजरंगी-िहाँ मिठुआ खाने बैठा है, तैं कहती है, हाथ खाली ह त दँू। तुझसे न उठा जाए, त िैं आऊँ।

    जिुनी जानती थी मक यह बुध्दू दास उठें गे, त पाि के बदले आधा सेर दे डालेंगे। चटपट रस ई से मनकल

    आई। एक कुस्तल्हया िें आधा पानी मलया, ऊपर से दूध डालकर सूरदास के पास आई और मिर्ाि

    महतैमर्ता से ब ली-यह ल , लौडें की जीभ तुिने ऐसी मबगाड़ दी है मक मबना दूध के कौर नही ंउठाता। बाप

    जीता था, त भर-पेट चने भी न मिलते थे, अब दूध के मबना खाने ही नही ंउठता।

    सूरदास-क्ा करँू भाभी, र ने लगता है, त तरस आता है।

    जिुनी-अभी इस तरह पाल-प स रहे ह मक एक मदन काि आएगा, िगर देख लेना, ज चुलू्ल-भर पानी क

    भी पूिे। िेरी बात गाँठ बाँध ल । पराया लड़का कभी अपना नही ंह ता। हाथ-पाँि हए, और तुम्हें

    दुत्कारकर अलग ह जाएगा। तुि अपने मलए साँप पाल रहे ह ।

    सूरदास-ज कुि िेरा धरि है, मकए देता हँ। आदिी ह गा, त कहाँ तक जस न िानेगा। हाँ, अपनी तकदीर

    ही ख टी हई, त क ई क्ा करेगा। अपने ही लड़के क्ा बडे़ ह कर िँुह नही ंफेर लेते?

    जिुनी-क् ंनही ंकह देते, िेरी भैंसें चरा लाया करे। जिान त हआ, क्ा जन्मभर नन्हा ही बना रहेगा? घीसू

    ही का ज ड़ी-पारी त है। िेरी बात गाँठ बाँध ल । अभी से मकसी काि िें न लगाया, त स्तखलाड़ी ह जाएगा।

    मफर मकसी काि िें उसका जी न लगेगा। सारी उिर तुम्हारे ही मसर फुलौररयाँ खाता रहेगा।

    सूरदास ने इसका कुि जिाब न मदया। दूध की कुस्तल्हया ली, और लाठी से टट लता हआ घर चला। मिट्ठू

    जिीन पर स रहा था। उसे मफर उठाया, और दूध िें र मटयाँ मभग कर उसे अपने हाथ से स्तखलाने लगा।

    मिट्ठू नीदं से मगरा पड़ता था, पर कौर सािने आते ही उसका िँुह आप-ही-आप खुल जाता। जब िह सारी

    र मटयाँ खा चुका है, त सूरदास ने उसे चटाई पर मलटा मदया, और हाँडी से अपनी पँचिेल स्तखचड़ी

    मनकालकर खाई। पेट न भरा, त हाँड़ी ध कर पी गया। तब मफर मिट्ठू क ग द िें उठाकर बाहर आया,

    द्वार पर टट्टी लगाई और िंमदर की ओर चला।

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    यह िंमदर ठाकुरजी का था, बिी के दूसरे मसरे पर। ऊँची कुरसी थी। िंमदर के चार ंतरफ तीन-चार गज

    का चौड़ा चबूतरा था। यही िुहले्ल की चौपाल थी। सारे मदन दस-पाँच आदिी यहाँ लेटे या बैठे रहते थे।

    एक पक्का कुऑं भी था, मजस पर जगधार नाि का एक ख िचेिाला बैठा करता था। तेल की मिठाइयाँ,

    िँूगफली, रािदाने के लड्डू आमद रखता था। राहगीर आते, उससे मिठाइयाँ लेते, पानी मनकालकर पीते

    और अपनी राह चले जाते। िंमदर के पुजारी का नाि दयामगरर था, ज इसी िंमदर के सिीप एक कुमटया िें

    रहते थे। सगुण ईश्वर के उपासक थे, भजन-कीतान क िुस्ति का िागा सिझते थे और मनिााण क ढ गं

    कहते थे। शहर के पुराने रईस कँुअर भरतमसंह के यहाँ िामसक िृमि बँधी हई थी। इसी से ठाकुरजी का

    भ ग लगता था। बिी से भी कुि-न-कुि मिल ही जाता था। मन:सृ्पह आदिी था, ल भ िू भी नही ंगया था,

    संत र् और धीरज का पुतला था। सारे मदन भगित्-भजन िें िग्न रहता था। िंमदर िें एक ि टी-सी संगत

    थी। आठ-नौ बजे रात क , मदन भर के काि-धांध से मनिृिा ह कर, कुि भिजन जिा ह जाते थे, और

    घंटे-द घंटे भजन गाकर चले जाते थे। ठाकुरदीन ढ लक बजाने िें मनपुण था, बजरंगी करताल बजाता था,

    जगधार क तँबूरे िें किाल था, नायकराि और दयामगरर सारंगी बजाते थे। िँजीरेिाल ंकी संख्या घटती-

    बढती रहती थी। ज और कुि न कर सकता, िह िँजीरा ही बजाता था। सूरदास इस संगत का प्राण था।

    िह ढ ल, िँजीरे, करताल, सारंगी, तँबूरा सभी िें सिान रूप से अभ्यि था, और गाने िें त आस-पास के

    कई िुहल्ल ंिें उसका जिाब न था। ठुिरी-गजल से उसे रुमच न थी। कबीर, िीरा, दादू, किाल, पलटू

    आमद संत ंके भजन गाता था। उस सिय उसका नेत्राहीन िुख अमत आनंद से प्रफुस्तल्लत ह जाता था।

    गाते-गाते िि ह जाता, तन-बदन की सुमध न रहती। सारी मचंताएँ, सारे के्लश भस्त त -सागर िें मिलीन ह

    जाते थे।

    सूरदास मिट्ठू क मलए पहँचा, त संगत बैठ चुकी थी। सभासद आ गए थे, केिल सभापमत की किी थी।

    उसे देखते ही नायकराि ने कहा-तुिने बड़ी देर कर दी, आधा घंटे से तुम्हारी राह देख रहे हैं। यह लौडंा

    बेतरह तुम्हारे गले पड़ा है। क् ंनही ंइसे हिारे ही घर से कुि िाँगकर स्तखला मदया करते।

    दयामगरर-यहाँ चला आया करे, त ठाकुरजी के प्रसाद ही से पेट भर जाए।

    सूरदास-तुम्ही ंल ग ंका मदया खाता है या और मकसी का? िैं त बनाने-भर क हँ।

    जगधार-लड़क ंक इतना मसर चढाना अच्छा नही।ं ग द िें लादे मफरते ह , जैसे नन्हा-सा बालक ह । िेरा

    मिद्याधार इससे द साल ि टा है। िैं उसे कभी ग द िें लेकर नही ंमफरता।

    सूरदास-मबना िाँ-बाप के लड़के हठी ह जाते हैं। हाँ, क्ा ह गा?

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    दयामगरर-पहले रािायण की एक चौपाई ह जाए।

    ल ग ंने अपने-अपने साज सँभाले। सुर मिला और आधा घंटे तक रािायण हई।

    नायकराि-िाह सूरदास िाह! अब तुम्हारे ही दि का जलूसा है।

    बजरंगी-िेरी त क ई द न ंऑंखें ले ले, और यह हनर िुझे दे दे, त िैं खुशी से बदल लँू।

    जगधार-अभी भैर ंनही ंआया, उसके मबना रंग नही ंजिता।

    बजरंगी-ताड़ी बेचता ह गा। पैसे का ल भ बुरा ह ता है। घर िें एक िेहररया है और एक बुमढया िाँ। िुआ

    रात-मदन हाय-हाय पड़ी रहती है। काि करने क त मदन है ही, भला रात क त भगिान् का भजन ह

    जाए।

    जगधार-सूरे का दि उखड़ जाता है, उसका दि नही ंउखड़ता।

    बजरंगी-तुि अपना ख चंा बेच , तुम्हें क्ा िालूि, दि मकसे कहते हैं। सूरदास मजतना दि बाँधते हैं, उतना

    दूसरा बाँध , त कलेजा फट जाए। हँसी-खेल नही ंहै।

    जगधार-अच्छा भैया, सूरदास के बराबर दुमनया िें क ई दि नही ंबाँध सकता। अब खुश हए।

    सूरदास-भैया, इसिें झगड़ा काहे का? िैं कब कहता हँ मक िुझे गाना आता है। तुि ल ग ंका हक्म पाकर,

    जैसा भला-बुरा बनता है, सुना देता हँ।

    इतने िें भैर ंभी आकर बैठ गया। बजरंगी ने वं्यग करके कहा-क्ा अब क ई ताड़ी पीनेिाला नही ंथा?

    इतनी जल्दी क् ंदूकान बढा दी?

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    ठाकुरदीन-िालूि नही,ं हाथ-पैर भी ध ए हैं या िहाँ से सीध ठाकुरजी के िंमदर िें चले आए। अब सफाई

    त कही ंरह ही नही ंगई।

    भैर -ंक्ा िेरी देह िें ताड़ी पुती हई है?

    ठाकुरदीन-भगिान् के दरबार िें इस तरह न आना चामहए। जात चाहे ऊँची ह या नीची; पर सफाई चामहए

    ज़रूर।

    भैर -ंतुि यहाँ मनत्य नहाकर आते ह ?

    ठाकुरदीन-पान बेचना क ई नीच काि नही ंहै।

    भैर -ंजैसे पान, िैसे ताड़ी। पान बेचना क ई ऊँचा काि नही ंहै।

    ठाकुरदीन-पान भगिान् के भ ग के साथ रखा जाता है। बडे़-बडे़ जनेऊधारी, िेरे हाथ का पान खाते हैं।

    तुम्हारे हाथ का त क ई पानी नही ंपीता।

    नायकराि-ठाकुरदीन, यह बात त तुिने बड़ी खरी कही। सच त है, पासी से क ई घड़ा तक नही ंिुआता।

    भैर -ंहिारी दूकान पर एक मदन आकर बैठ जाओ, त मदखा दँू, कैसे-कैसे धािाात्मा और मतलकधारी आते

    हैं। ज गी-जती ल ग ंक भी मकसी ने पान खाते देखा है? ताड़ी, गाँजा, चरस पीते चाहे जब देख ल । एक-

    से-एक िहात्मा आकर खुशािद करते हैं।

    नायकराि-ठाकुरदीन, अब इसका जिाब द । भैर ंपढा-मलखा ह ता, त िकील ंके कान काटता।

    भैर -ंिैं त बात सच्ची कहता हँ, जैसे ताड़ी िैसे पान, बस्ति परात की ताड़ी क त ल ग दिा की तरह पीते

    हैं।

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    जगधार-यार , द -एक भजन ह ने द । िान क् ंनही ंजाते ठाकुरदीन? तुम्हें हारे, भैर ंजीता, चल िुट्टी हई।

    नायकराि-िाह, हार क् ंिान लें। सासतराथा है मक मदल्लगी। हाँ, ठाकुरदीन क ई जिाब स च मनकाल ।

    ठाकुरदीन-िेरी दूकान पर खडे़ ह जाओ, जी खुश ह जाता है। केिडे़ और गुलाब की सुगंधा उड़ती है।

    इसकी दूकान पर क ई खड़ा ह जाए, त बदबू के िारे नाक फटने लगती है। खड़ा नही ंरहा जाता। परनाले

    िें भी इतनी दुगंधा नही ंह ती।

    बजरंगी-िुझे ज घंटे-भर के मलए राज मिल जाता, त सबसे पहले शहर-भर की ताड़ी की दूकान ंिें आग

    लगिा देता।

    नायकराि-अब बताओ भैर ,ं इसका जिाब द । दुगंधा त सचिुच उड़ती है, है क ई जिाब?

    भैर -ंजिाब एक नही,ं सैकड़ ंहैं। पान सड़ जाता है, त क ई मिट्टी के ि ल भी नही ंपूिता। यहाँ ताड़ी

    मजतनी ही सड़ती है, उतना ही उसका ि ल बढता है। मसरका बन जाता है, त रुपये ब तल मबकता है, और

    बडे़-बडे़ जनेऊधारी ल ग खाते हैं।

    नायकराि-क्ा बात कही है मक जी खुश ह गया। िेरा अस्तियार ह ता, त इसी घड़ी तुिक िकालत की

    सनद दे देता। ठाकुरदीन, अब हार िान जाओ, भैर ंसे पेश न पा सक गे।

    जगधार-भैर ,ं तुि चुप क् ंनही ंह जाते? पंडाजी क त जानते ह , दूसर ंक लड़ाकर तिाशा देखना

    इनका काि है। इतना कह देने िें कौन-सी िरजादा घटी जाती है मक बाबा, तुि जीते और िैं हारा।

    भैर -ंक् ंइतना कह दँू? बात करने िें मकसी से कि हँ क्ा?

    जगधार-त ठाकुरदीन, तुम्ही ंचुप ह जाओ।

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    ठाकुरदीन-हाँ जी, चुप न ह जाऊँगा, त क्ा करँूगा। यहाँ आए थे मक कुि भजन-कीतान ह गा, स व्यथा

    का झगड़ा करने लगे। पंडाजी क क्ा, इन्हें त बेहाथ-पैर महलाए अमिमतायाँ और लड्डू खाने क मिलते हैं,

    इन्हें इसी तरह की मदल्लगी सूझती है। यहाँ त पहर रात से उठकर मफर चक्की िें जुतना है।

    जगधार-िेरी त अबकी भगिान् से भेंट ह गी, त कहँगा, मकसी पंडे के घर जन्म देना।

    नायकराि-भैया, िुझ पर हाथ न उठाओ, दुबला-पतला आदिी हँ। िैं त चाहता हँ, जलपान के मलए तुम्हारे

    ही ख चें से मिठाइयाँ मलया करँू, िगर उस पर इतनी िस्तियाँ उड़ती हैं, ऊपर इतना िैल जिा रहता है

    मक खाने क जी नही ंचाहता।

    जगधार-(मचढकर) तुम्हारे न लेने से िेरी मिठाइयाँ सड़ त नही ंजाती ंमक भूख ंिरता हँ? मदन-भर िें

    रुपया-बीस आने पैसे बना ही लेता हँ। मजसे सेंत-िेत िें रसगुले्ल मिल जाएँ, िह िेरी मिठाइयाँ क् ंलेगा?

    ठाकुरदीन-पंडाजी की आिदनी का क ई मठकाना नही ंहै, मजतना र ज मिल जाए, थ ड़ा ही है; ऊपर से

    भ जन घाते िें। क ई ऑंख का अंधा, गाँठ का पूरा फँस गया, त हाथी-घ डे़ जगह-जिीन, सब दे मदया।

    ऐसा भागिान और कौन ह गा?

    दयामगरर-कही ंनही ंठाकुरदीन, अपनी िेहनत की किाई सबसे अच्छी। पंड ंक यामत्रय ंके पीिे दौड़ते

    नही ंदेखा है।

    नायकराि-बाबा, अगर क ई किाई पसीने की है, त िह हिारी किाई है। हिारी किाई का हाल बजरंगी

    से पूि ।

    बजरंगी-और ंकी किाई पसीने की ह ती ह गी, तुम्हारी किाई त खून की है। और ल ग पसीना बहाते हैं,

    तुि खून बहाते ह । एक-एक जजिान के पीिे ल ह की नदी बह जाती है। ज ल ग ख चंा सािने रखकर

    मदन-भर ििी िारा करते हैं, िे क्ा जानें, तुम्हारी किाई कैसी ह ती है? एक मदन ि रचा थािना पडे़, त

    भागने क जगह न मिले।

    जगधार-चल भी, आए ह िँुहदेखी कहने, सेर-भर दूध ढाई सेर बनाते ह , उस पर भगिान् के भगत ह ।

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    बजरंगी-अगर क ई िाई का लाल िेरे दूध िें एक बँूद पानी मनकाल दे, त उसकी टाँग की राह मनकल

    जाऊँ। यहाँ दूध िें पानी मिलाना गऊ-हत्या सिझते हैं। तुम्हारी तरह नही ंमक तेल की मिठाई क घी की

    कहकर बेचें, और भ ले-भाले बच्च ंक ठगें।

    जगधार-अच्छा भाई, तुि जीते, िैं हारा। तुि सचे्च, तुम्हारा दूध सच्चा। बस, हि खराब, हिारी मिठाइयाँ

    खराब। चल िुट्टी हई।

    बजरंगी-िेरे मिजाज क तुि नही ंजानते, चेता देता हँ। सच कहकर क ई सौ जूते िार ले, लेमकन झठूी बात

    सुनकर िेरे बदन िें आग लग जाती है।

    भैर -ंबजरंगी, बहत बढकर बातें न कर , अपने िँुह मियाँ-मिट्ठू बनने से कुि नही ंह ता है। बस, िँुह न

    खुलिाओ, िैंने भी तुम्हारे यहाँ का दूध मपया है। उससे त िेरी ताड़ी ही अच्छी है।

    ठाकुरदीन-भाई, िँुह से ज चाहे ईिानदार बन ले; पर अब दूध सपना ह गया। सारा दूध जल जाता है,

    िलाई का नाि नही।ं दूध जब मिलता था, तब मिलता था, एक ऑंच िें अंगुल-भर ि टी िलाई पड़ जाती

    थी।

    दयामगरर-बच्चा, अभी अच्छा-बुरा कुि मिल त जाता है। िे मदन आ रहे हैं मक दूध ऑंख ंिें ऑंजने क भी

    न मिलेगा।

    भैर -ंहाल त यह है मक घरिाली सेर के तीन सेर बनाती है, उस पर दािा यह मक हि सच्चा िाल बेचते हैं।

    सच्चा िाल बेच , त मदिाला मनकल जाए। यह ठाट एक मदन न चले।

    बजरंगी-पसीने की किाई खानेिाल ंका मदिाला नही ंमनकलता; मदिाला उनका मनकलता है, ज दूसर ंकी

    किाई खा-खाकर ि टे पड़ते हैं। भाग क सराह मक शहर िें ह ; मकसी गाँि िें ह ते, त िँुह िें िस्तियाँ

    आती-ंजाती।ं िैं त उन सब कं ंक पापी सिझता हँ, ज औने-पौने करके, इधार का सौदा उधार बेचकर

    अपना पेट पालते हैं। सच्ची किाई उन्ही ंकी है, ज िाती फाड़कर धरती से धान मनकालते हैं।

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    बजरंगी ने बात त कही, लेमकन लस्तज्जत हआ। इस लपेट िें िहाँ के सभी आदिी आ जाते थे। िह भैर ,ं

    जगधार और ठाकुरदीन क लक्ष्य करना चाहता था, पर सूरदास, नायकराि, दयामगरर, सभी पामपय ंकी

    शे्रणी िें आ गए।

    नायकराि-तब त भैया, तुि हिें भी ले बीते। एक पापी त िैं ही हँ मक सारे मदन िटरगिी करता हँ, और

    िह भ जन करता हँ मक बड़ -ंबड़ ंक ियस्सर न ह ।

    ठाकुरदीन-दूसरा पापी िैं हँ मक शौक की चीज बेचकर र मटयाँ किाता हँ। संसार िें तिा ली न रहें, त

    मकसका नुकसान ह गा?

    जगधार-तीसरा पापी िैं हँ मक मदन-भर औन-पौन करता रहता हँ। सेि और खुि खाने क न मिलें, त क ई

    िर न जाएगा।

    भैर -ंतुिसे बड़ा पापी िैं हँ मक सबक नसा स्तखलाकर अपना पेट पालता हँ। सच पूि , त इससे बुरा क ई

    काि नही।ं आठ ंपहर नशेबाज ंका साथ, उन्ही ंकी बातें सुनना, उन्ही ंके बीच रहना। यह भी क ई मजंदगी

    है!

    दयामगरर-क् ंबजरंगी, साधु-संत त सबसे बडे़ पापी ह गें मक िे कुि नही ंकरते?

    बजरंगी-नही ंबाबा, भगिान् के भजन से बढकर और कौन उद्यि ह गा? राि-नाि की खेती सब काि ंसे

    बढकर है।

    नायकराि-त यहाँ अकेले बजरंगी पुन्यात्मा है, और सब-के-सब पापी हैं?

    बजरंगी-सच पूि , त सबसे बड़ा पापी िैं हँ मक गउओ ंका पेट काटकर, उनके बिड़ ंक भूखा िारकर

    अपना पेट पालता हँ।

    सूरदास-भाई, खेती सबसे उिाि है, बान उससे िस्तध्दि है; बस, इतना ही फरक है। बान क पाप क् ं

    कहते है�